उत्तराखंड में समाज कल्याण और परिवहन विभाग के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के इस्तीफे के पेशकश की खबर चर्चा के केंद्र में है। निश्चित तौर पर यह खबर जिस तरह से सामने आई है वह साफ करती है कि यशपाल आर्य की जानकारी और मर्जी के बिना यह जनकरी बाहर आने की संभावना ना के बराबर है। क्योंकि मामला मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और यशपाल आर्य के बीच का ही था। क्या इसके पीछे वही कारण है जो प्रचारित किया गया है या कुछ और। यह विचारणीय प्रश्न है।
कारण सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में रोक लगाने और नया रोस्टर जारी किया गया है। यह फैसला उस कैबिनेट सब कमेटी की सिफारिशों पर किया गया जिसके अध्यक्ष खुद यशपाल आर्य थे और दो अन्य कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल व अरविंद पाण्डेय उसके सदस्य।
फिलहाल यशपाल आर्य ने अपनी चाल चल दी है। जरा अतीत में जाएं तो ये वही यशपाल आर्य हैं जिनको कांग्रेस से विधान सभा चुनाव के पहले अमित शाह बीजेपी में लेकर आए थे। फिर जब एनएच 74 घोटाले की जांच ने जोर पकड़ा तो उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया क्योंकि यह उस क्षेत्र का मामला है जहां यशपाल आर्य की राजनीति का गढ़ है। तो क्या यशपाल आर्य ने ये आरक्षित वर्ग को न्यायोचित हक का अस्त्र इसलिए इस्तेमाल किया क्योंकि उनको दिल्ली में पार्टी और सरकार से वह भाव मिलना बंद हो चुका था जो उत्तराखंड विधान सभा चुनाव के दौरान मिला था। जैसे जैसे उनके तमाम किस्से विरोधी दिल्ली पहुंचाते रहे उनकी पकड़ और साख बीजेपी हाई कमान की नजर में कम होती रही।
12 सितंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चावल घोटाले का जिक्र कर दिया और बोले कि कुछ लोग अपनी जेब में चावल के कागज लेकर उत्तराखण्ड पहुंचते थे और असली चावल कहीं और चला जाता था। यह भी सीएम का कांग्रेस से बीजेपी में विधान सभा चुनाव के दौरान ही आए दूसरे कबिना मंत्री पर राजनीतिक प्रहार माना गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्यमंत्री अपना दूसरा तीर कमान से छोड़ें उसके पहले ही यशपाल आर्य ने वह दांव लगा दिया जो वोट बैंक को पर असर डालता है इसलिए मुख्यमंत्री सकते में हैं और डैमेज कंट्रोल में जुट गए बताए जा रहे हैं।
अब सरकार एनएच 74 घोटाले पर आगे बढ़ने का साहस नहीं जुटा पाएगी। उधर, उधम सिंह नगर में हुए चावल घोटाले के समय 2012 से 2017 के काल में प्रीतम सिंह खाद्य आपूर्ति मंत्री थे, उनका वर्तमान मुख्यमंत्री के मुंह लगे वरिष्ठ नौकरशाह से 36 का आंकड़ा जग जाहिर है। माना जाता है कि उनके ही उपलब्ध कराए दस्तावेजों के आधार पर अगस्त 17 में त्रिवेंद्र रावत ने जांच शुरू कराई थी। उधर कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई के चलते हरीश रावत भी जांच के लिए मुख्यमंत्री के मददगार अंदरखाने बन रहे थे। अचानक प्रीतम सिंह ने जांच में दो और मुद्दों को शामिल करने की मांग कर डाली। बस मामला कृषि विभाग तक जा पहुंचा और धान पर आ गया। एक वर्तमान काबिना मंत्री तक जांच पहुंचती तो इसे भी एनएच 74 की तर्ज पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके पहले प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में हरिद्वार में हुवे घोटाले को भी ये सरकार ठंडे बस्ते में डाल चुकी है। यशपाल आर्य के इस्तीफे की खबर ने इन सभी मुद्दों को गरमा दिया है।
खास तौर पर 2014 से 2019 के दौर में हुवे प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना में हुवे घोटाले की जांच को दबाने की जानकारी प्रधानमंत्री तक पहुंचाई जा रही है। इससे लगता है कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड की राजनीति में गर्मी बनी रहेगी। इसका असर इन दिनों नजर भी आने लगा है सरकार की उपलब्धियों के इश्तेहारों से अखबारों और चैनलों को उपकृत किया जा रहा है। इस दौर में माध्यमों के लिए यह सकून का संदेश है। तो क्या कांग्रेस से बीजेपी में आया धड़ा सी एम के खिलाफ लाम बंदी कर मंदी के दौर में मोदी सरकार के लिए नया सिरदर्द पैदा करने की कोशिश कर रहा है।
(यह पोस्ट फेसबुक से ली गई है। लेखक निशीथ जोशी पंजाब केसरी उत्तराखंड के संपादक है।)