राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय (श्रीनगर) के 11वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग करते हुए कुल 59 दीक्षार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए।
राष्ट्रपति ने उपाधि और मेडल प्राप्त करने वाले सभी दीक्षार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उनको राष्ट्र निर्माण और समाज निर्माण में अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करना है। उन्होंने सभी विद्यार्थियों और संस्थान से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े हुए शिक्षकों से अपेक्षा की कि वे शिक्षा को समाज से जोड़ने का काम करें जिससे समाज के अंतिम छोर पर बैठा व्यक्ति भी विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सके। दीक्षार्थियों को उपाधि प्रदान करते समय महामहिम राष्ट्रपति ने सभी दीक्षार्थियों को तीन प्रतिज्ञा लेने का आह्वान किया। उन्होंने प्रतिज्ञा दिलाई की जीवन में जिनकी बदौलत आप आगे बढ़े हैं उनका उनके योगदान को नहीं भूलना चाहिए। दूसरा, अपने नैतिक मूल्यों से कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए। तीसरा जो भी जीवन में शिक्षा प्राप्त की है उसमें समाज का बड़ा योगदान होता है, इसलिए विकास की मुख्यधारा से जो लोग अभी तक वंचित है उनको भी विकास की मुख्यधारा में शामिल करने में अपना सहयोग प्रदान करें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड ने हमेशा ही शिक्षा और ज्ञान को अधिक महत्व दिया है।
राष्ट्रपति ने इस दौरान अपने संबोधन में उत्तराखंड को ज्ञान, विज्ञान, विवेकवान और शौर्य की भूमि बताते हुए कहा कि इस देवभूमि से अनेक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व ने जन्म लिया है जिन्होंने देश-दुनिया का मार्गदर्शन किया। उन्होंने सृष्टि लखेड़ा द्वारा निर्मित एक था गांव डॉक्युमेंट्री को नेशनल सिनेमा अवार्ड प्राप्त करने की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में भी यहां की अनेक विभूतियों ने हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया है। जिसमें सुमित्रानंदन पंत, मंगेश डबराल, शिवानी, भक्तदर्शन आदि लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
राष्ट्रपति ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक यात्रा में भी उत्तराखंड के योगदान की सराहना की। उन्होंने उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवा और यहां के स्वच्छ जल स्रोत जो मैदानी क्षेत्र के मानव और वन्यजीव सहित वनस्पतियों को जीवन प्रदान करते हैं का महत्व भी बताया। राष्ट्रपति ने स्थानीय सरकार द्वारा रोजगार और स्वरोजगार के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों की भी सराहना की।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने उपाधि और मेडल प्राप्त करने वाले छात्रों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज से वे अपने जीवन के आगे की और बहुत महत्वपूर्ण यात्रा की एक शुरूआत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दीक्षांत पढ़ाई का अंत नहीं है बल्कि सतत शैक्षणिक जीवन की यात्रा का एक पड़ाव है। शिक्षा एक अंतहीन यात्रा के समान है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है आप अपना लक्ष्य महान रखिए उमंग, उत्साह और ऊर्जा के स्रोतों से हमेशा जुड़े रहिए और कभी हार मत मानिए सफलता आपको अवश्य मिलेगी।
राज्यपाल ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आप ऐसे समय में समाज में अपना योगदान देने जा रहे हैं जब हम आजादी के अमृत काल में विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत और विश्वगुरु भारत बनने के महान संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हमारा लक्ष्य वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का है, जिसको प्राप्त करने में आप सभी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य सरकार हमारे सभी राजकीय विश्वविद्यालयों में नवाचार और तकनीक के संगम को बढ़ावा देने के साथ-साथ पारदर्शी एवं भ्रष्टाचार मुक्त तंत्र विकसित कर रही है। जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। हमारे सभी विश्वविद्यालयों में शिक्षण प्रशिक्षण एवं शोध परियोजनाओं पर तेजी से कार्य हो रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के निर्देशन में विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों शिक्षण एवं शोध संस्थानों में अतुलनीय कार्य हो रहा है।
विश्वविद्यालय के निर्माण में स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के योगदान को याद करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीनगर की यह धरती एक ऐतिहासिक धरती रही है। यहाँ देवताओं के पवित्र मंदिर है, वीरों की महान गाथाएँ हैं तो साथ ही वर्तमान सदी में यह नगर विद्युत परियोजनाओं के एक बड़े केंद्र होने के साथ साथ एनआईटी और अर्ध सैनिक बलों के प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र भी है। एक प्रकार से श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखण्ड की प्रगति का एक आधार केंद्र बन गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सभी को हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह और विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती वर्ष की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में ज्ञान की अविरल गंगा को प्रवाहित करने वाले इस संस्थान में उपस्थित होकर वे स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने हिमालय पुत्र स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा का स्मरण करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय उनकी विकासवादी सोच का परिणाम है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस वर्ष दीक्षांत समारोह की थीम ’’सशक्त महिला, समृद्ध भारत’’ रखी गई है। जिसका स्पष्ट उदाहरण आज इस दीक्षांत समारोह की मुख्य अतिथि राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी हैं। उनका जीवन, शुरुआती संघर्ष, समृद्ध सेवा और अनुकरणीय सफलता प्रत्येक भारतीय को प्रेरित करता है। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति की जीवटता और समर्पण शक्ति को नमन करते हुए कहा कि, वे सही अर्थों में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक हैं।
मुख्यमंत्री ने सभी विद्यार्थियों से कहा कि कभी भी जीवन में तनाव न लें। उन्होंने कहा कि जब भी युवाओं के साथ उन्हें संवाद करने का अवसर मिलता है, तो वे राज्य सरकार के ‘’सर्वश्रेष्ठ उत्तराखण्ड‘’ निर्माण के अपने ’‘विकल्प रहित संकल्प‘’ को दोहराते हैं। सभी को सर्वश्रेष्ठ उत्तराखण्ड के निर्माण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी है। आगामी वर्षों में उत्तराखंड देश का सबसे समृद्धशाली और सशक्त राज्य हो, इस भावना के साथ हम सभी को साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सबके सहयोग से उत्तराखण्ड हर क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल होगा।
इस दौरान दीक्षांत समारोह में विधायक देवप्रयाग विनोद कंडारी व विधायक पौड़ी राजकुमार पोरी, कुलाधिपति गढ़वाल विश्वविद्यालय डॉ. योगेंद्र नारायण, कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल सहित उपाधि प्राप्त करने वाले शिक्षार्थी, उनके अभिभावक हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय के शिक्षकगण तथा जनमानस उपस्थित रहा।
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सुशासन समय की मांग है और इसे हर हाल में स्थापित करना है-राष्ट्रपति
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी में सिविल सेवा के 97वें कॉमन फाउंडेशन कोर्स के समापन समारोह को संबोधित किया।
प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि जब वह उन्हें संबोधित कर रही थीं, तो उनकी स्मृति में सरदार बल्लभ भाई पटेल के शब्द गूंज रहे थे। अप्रैल 1947 में सरदार पटेल ने आई.ए.एस. प्रशिक्षुओं के एक बैच से मिलते समय कहा था कि ‘‘हमें उम्मीद करनी चाहिए और हमें अधिकार है कि हम हर सिविल सेवक से सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा करें, चाहे वह किसी भी जिम्मेदारी के पद पर हो। ’’राष्ट्रपति ने कहा कि आज हम गर्व से कह सकते हैं कि लोक सेवक इन अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि इस फाउंडेशन कोर्स का मूल मंत्र ‘‘मैं नहीं, हम हैं’’। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस कोर्स के प्रशिक्षु अधिकारी सामूहिक भावना के साथ देश को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उठाएंगे। उन्होंने कहा कि उनमें से कई आने वाले 10-15 वर्षों तक देश के एक बड़े हिस्से का प्रशासन चलाएंगे और जनता से जुड़ेंगे। वे अपने सपनों के भारत को एक ठोस आकार दे सकते हैं।
अकादमी के आदर्श वाक्य ’शीलम परम भूषणम’ का उल्लेख करते हुए, जिसका अर्थ है ’चरित्र सबसे बड़ा गुण है’, राष्ट्रपति ने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षण की पद्धति कर्म-योग के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें चरित्र का बहुत महत्व है। उन्होंने सलाह दी कि प्रशिक्षु अधिकारियों को समाज के वंचित वर्ग के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ’गुमनामी’, ’क्षमता’ और ’आत्मसंयम’ एक सिविल सेवक के आभूषण हैं। ये गुण उन्हें पूरी सेवा अवधि के दौरान आत्मविश्वास देंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान अधिकारी प्रशिक्षुओं ने जो मूल्य सीखे हैं, उन्हें सैद्धांतिक दायरे तक सीमित नहीं रखना चाहिए। देश के लोगों के लिए काम करते हुए उन्हें कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में उन्हें इन मूल्यों का पालन करते हुए पूरे विश्वास के साथ काम करना होगा। भारत को प्रगति और विकास के पथ पर अग्रसर करना तथा देश की जनता के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करना उनका संवैधानिक कर्तव्य के साथ-साथ नैतिक दायित्व भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि समाज के हित के लिए कोई भी कार्य कुशलतापूर्वक तभी पूरा किया जा सकता है जब सभी हितधारकों को साथ लिया जाए। जब अधिकारी समाज के हाशिए पर पड़े और वंचित वर्ग को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेंगे तो निश्चय ही वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि सुशासन समय की मांग है। सुशासन का अभाव हमारी अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं की जड़ है। लोगों की समस्याओं को समझने के लिए आम लोगों से जुड़ना जरूरी है। उन्होंने प्रशिक्षु अधिकारियों को लोगों से जुड़ने के लिए विनम्र होने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि तभी वे उनसे बातचीत कर पाएगें और उनकी जरूरतों को समझ सकेंगे और उनकी बेहतरी के लिए काम कर सकेंगे। सरकारी योजनाओं का लाभ प्रत्येक जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने का दायित्व भी आपको निभाना हैं।
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि पूरी दुनिया इन मुद्दों से जूझ रही है। इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने अधिकारियों से अपेक्षा की कि वे भविष्य को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को पूरी तरह से लागू करने में मददगार बने।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की आजादी के अमृत काल में 97वें कॉमन फाउंडेशन कोर्स के अधिकारी सिविल सेवाओं में प्रवेश कर रहे हैं। अगले 25 वर्षों में, वे देश के सर्वांगीण विकास के लिए नीति-निर्माण और उसके कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस संबंध में राष्ट्रपति ने अकादमी में आज उद्घाटन किए गए ’वाक वे ऑफ सर्विस’ का जिक्र करते हुए कहा कि जहां हर साल, अधिकारी प्रशिक्षुओं द्वारा निर्धारित राष्ट्र निर्माण लक्ष्यों को टाइम कैप्सूल में रखा जाएगा, राष्ट्रपति ने प्रशिक्षु अधिकारियों से अपेक्षा की कि वे अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को हमेशा याद रखें और उन्हें प्राप्त करने के लिये समर्पित रहें। उन्होंने कहा कि जब वे वर्ष 2047 में टाइम कैप्सूल खोलेंगे, तो उन्हें अपने लक्ष्य को पूरा करने पर गर्व और संतोष होगा।
राष्ट्रपति ने प्रशिक्षु अधिकारियों के इस बैच में 133 बेटियां के शामिल होने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश के सर्वांगीण विकास के लिए महिलाओं और पुरूषों दोनों का योगदान महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने विशेषकर बेटियों से अपील की कि अपनी सेवा के दौरान वह जहां भी रहे, लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते रहें। जब हमारी बेटियाँ विभिन्न क्षेत्रों में आगे आएंगी तो हमारा देश और समाज सशक्त बनेगा।
राष्ट्रपति ने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के पूर्व और वर्तमान अधिकारियों की देश के प्रतिभाशाली लोगों को सक्षम सिविल सेवकों में ढालने में उनके महान समर्पण और कड़ी मेहनत के लिए सराहना की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अकादमी के नए छात्रावास ब्लॉक और मैस, एरिना पोलो फील्ड सहित आज उद्घाटन की गई सुविधाओं से प्रशिक्षु अधिकारियों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि “पर्वतमाला हिमालयन एंड नॉर्थ ईस्ट आउटडोर लर्निंग एरिना“, जिसका निर्माण आज शुरू हो गया है, हिमालय और भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के बारे में सिविल सेवकों और प्रशिक्षुओं के लिए एक ज्ञान आधार के रूप में कार्य करेगा। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा प्रशिक्षण के दौरान सराहनीय एवं बेहतर कार्य व्यवहार वाले प्रशिक्षु अधिकारियों को सम्मानित भी किया।
इससे पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी परिसर में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्तियों पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की तथा अकादमी परिसर में स्थापित पोलो ग्राउंड के उन्नयन एवं पोलो एरिना, अकादमी कर्तव्य पथ, अकादमी अमृत टेलीमेडिसिन परामर्श सेवा केन्द्र एवं मोनेस्टी परिसर तथा वॉक-वे ऑफ सर्विस का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति द्वारा पर्वतमाला हिमालय एवं पूर्वाेत्तर आउटडोर लर्निंग एरिना का भी शिलान्यास किया गया। इन योजनाओं के सम्बन्ध में अकादमी निदेशक द्वारा राष्ट्रपति को विस्तार से जानकारी भी दी गई। इस अवसर पर राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) एवं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इन कार्यक्रमों में राष्ट्रपति के साथ मौजूद रहे।
राष्ट्रपति ने किया 2001.94 करोड़ रूपये की 9 विकास योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु का पहली बार उत्तराखण्ड आगमन पर मुख्यमंत्री आवास में नागरिक अभिनन्दन किया गया। मुख्यमंत्री आवास में आयोजित गरिमापूर्ण कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने 2001.94 करोड़ रूपये की 9 विकास योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया। राष्ट्रपति ने 528.35 करोड़ रूपये की 3 योजनाओं का लोकार्पण और 1473.59 करोड़ की 6 योजनाओं का शिलान्यास किया। इस अवसर पर राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.), मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी एवं अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
राष्ट्रपति द्वारा लोकार्पित की गयी योजनाओं में 330.64 करोड़ रूपये की लागत से निर्मित सोबन सिंह जीना राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान (मेडिकल कॉलेज) अल्मोड़ा, पिटकुल द्वारा हरिद्वार जनपद के पदार्था में 84 करोड़ रूपये की लागत से 132 के.वी. के आधुनिक तकनीक के बिजली घर एवं इससे संबंधित लाइन का निर्माण, जिला रूद्रप्रयाग में 113.71 करोड़ रूपये की लागत से निर्मित 4.5 मेगावाट की कालीगंगा-द्वितीय लघु जल विद्युत परियोजना शामिल हैं।
राष्ट्रपति द्वारा जिन योजनाओं का शिलान्यास किया गया उनमें 306 करोड़ रूपये की लागत से चीला पॉवर हाऊस 144 मेगावाट की योजना का रेनोवेशन कार्य, देहरादून स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत 204.46 करोड़ की लागत से इंटीग्रेटेड ऑफिस कॉम्पलेक्स ग्रीन बिल्डिंग का निमार्ण, 131 करोड़ रूपये की लागत से हरिद्वार के मंगलोर में 220 के.वी. सबस्टेशन, 750 करोड़ रूपये की लागत से देहरादून के मुख्य मार्गों की ओवर हेड एचटी एवं एलटी विद्युत लाइनों को भूमिगत किये जाने का कार्य, 32.93 करोड़ रूपये की लागत से राजकीय पॉलिटेक्निक नरेन्द्र नगर में दूसरे चरण का निर्माण कार्य और चंपावत के टनकपुर में 49.20 करोड़ रूपये की लागत से आधुनिक अन्तर्राज्यीय बस टर्मिनल का शिलान्यास शामिल है।
इस अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक संध्या में राष्ट्रपति उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से भी परिचित हुई। राष्ट्रपति के समक्ष प्रदेश की लोक संस्कृति का लोक कलाकारों द्वारा प्रदर्शन किया गया।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने कहा कि देव-भूमि, तपोभूमि और वीर-भूमि उत्तराखंड में आना, मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। हिमालय को महाकवि कालिदास ने ‘देवात्मा’ कहा है। राष्ट्रपति के रूप में, हिमालय के आंगन, उत्तराखंड में, आप सब के अतिथि-सत्कार का उपहार प्राप्त करके, मैं स्वयं को कृतार्थ मानती हूं। राष्ट्रपति ने अभिनंदन-समारोह के उत्साह-पूर्ण आयोजन के लिए राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उत्तराखंडवासियों को धन्यवाद दिया।
राष्ट्रपति ने विभिन्न विकास परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इन परियोजनाओं से लोगों के लिए जन-सुविधाएं बढ़ेंगी। उन्होंने इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की सराहना की। उन्होंने कहा कि राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के सुव्यवस्थित मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के ऊर्जावान नेतृत्व में, उत्तराखण्ड समग्र विकास के पथ पर अग्रसर है। राज्य के विकास की इस यात्रा में उत्तराखंड के परिश्रमी और प्रतिभाशाली निवासियों का महत्वपूर्ण योगदान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी परंपरा में नगाधिराज हिमालय के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को देवताओं का वंशज माना गया है। इस प्रकार उत्तराखंड के भाई-बहन एक दिव्य परंपरा के वाहक हैं। आप सबके बीच आकर मैं विशेष प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूं। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और यहां के लोगों के प्रेमपूर्ण व्यवहार ने स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी से लेकर प्रकृति के सुकुमार कवि, सुमित्रानंदन पंत को मंत्रमुग्ध किया था। इस प्राकृतिक सुंदरता को बचाते हुए ही विकास के मार्ग पर हमें आगे बढ़ना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत माता की धरती के बहुत बड़े भाग को निर्मित और सिंचित करने वाली नदी-माताओं के स्रोत उत्तराखंड में हैं। हिमालय और उत्तराखंड भारत-वासियों की अंतरात्मा में बसे हुए हैं। हमारे ऋषि-मुनि ज्ञान की तलाश में हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में आश्रय लेते रहे हैं। यह लोक-मान्यता है कि लक्ष्मण जी के उपचार के लिए इसी क्षेत्र के द्रोण-पर्वत को ‘संजीवनी बूटी’ सहित हनुमान जी ले कर गए थे। इस तरह आध्यात्मिक शांति और शारीरिक उपचार दोनों ही दृष्टियों से उत्तराखंड कल्याण का स्रोत रहा है।
आधुनिक चिकित्सा तथा आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्रों में उत्तराखंड निरंतर अपनी परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए नए-नए संस्थान भी स्थापित कर रहा है। उत्तराखंड में नेचुरोपैथी के अनेक प्रसिद्ध केंद्र हैं जहां देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग आकर स्वास्थ्य-लाभ करते हैं। उत्तराखंड में नेचर टूरिज्म और एडवेंचर टूरिज्म के साथ-साथ मेडिकल टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। इससे युवाओं में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि स्वयं पर्वतराज हिमालय और उत्तराखंड के शूरवीर लोग भारत माता के प्रहरी भी रहे हैं। हमारे वर्तमान सीडीएस जनरल अनिल चौहान उत्तराखंड के ही सपूत हैं। भारत के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत भी इसी धरती की विभूति थे। 1990 के दशक में जनरल बिपिन चंद्र जोशी ने चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के रूप में भारत माता की सेवा की थी। कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा करने वाले मेजर राजेश सिंह अधिकारी और मेजर विवेक गुप्ता का बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। उन दोनों सूरमाओं को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 1962 के युद्ध में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले महावीर चक्र से सम्मानित जसवंत सिंह रावत एक अमर सेनानी के रूप में भारतवासियों को हमेशा याद रहेंगे। स्वाधीनता के तुरंत बाद कश्मीर में घुसपैठियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सैनिक दीवान सिंह को कृतज्ञ राष्ट्र ने महावीर चक्र से सम्मानित किया था। भारत माता के लिए मर-मिटने वाले उन सभी वीरों को मैं सादर नमन करती हूं और ऐसे वीरों की जननी उत्तराखंड की भूमि को शत-शत प्रणाम करती हूं। इस धरती के शूरवीरों को अशोक-चक्र और कीर्ति-चक्र से भी सम्मानित किया गया है। मैं सभी देशवासियों की ओर से उत्तराखंड के वीर सपूतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हिमालय की पुत्री अर्थात पर्वत-पुत्री पार्वती हम सभी देशवासियों के लिए नारी-चरित्र की गरिमा और शक्ति का प्रतीक हैं। उत्तराखंड सहित सारी हिमालय-भूमि अनादिकाल से शक्ति की उपासना का केंद्र रही है। उसी गरिमा और शक्ति का अंश रानी कर्णावती जैसी वीरांगना, गौरा देवी जैसी वन-संरक्षक और बछेंद्री पाल जैसी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाली प्रथम महिला की जीवन-गाथाओं में देखने को मिलता है। उत्तराखंड की श्रीमती बसंती बिष्ट ने राज्य की प्रथम महिला ग्राम-प्रधान के रूप में जन-सेवा कर के तथा प्रौढ़-शिक्षा से लेकर स्वच्छता तक अनेक जन-कल्याण के कार्यों में योगदान दे कर देश की सभी बहनों-बेटियों के लिए आदर्श स्थापित किया है। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उत्तराखंड की एक और बहन बसंती देवी ने घरेलू हिंसा और उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं की मुक्ति के लिए अभियान चलाया, अनेक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायता की, महिला समूहों के माध्यम से नदी और जंगल के संरक्षण का कार्य किया और बाल विवाह के विरुद्ध जागरूकता का प्रसार किया। उन्हें भी पद्मश्री से अलंकृत किया गया। उत्तराखंड की बेटी वंदना कटारिया ने भारत की राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम की श्रेष्ठ खिलाड़ियों में अपना स्थान बनाया है। उत्तराखंड की इस विलक्षण प्रतिभा-संपन्न बेटी को 30 वर्ष से कम की आयु में ही पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखंड में बेटियों की युवा पीढ़ी भी प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यह सामाजिक परिवर्तन एक विकसित उत्तराखण्ड और विकसित भारत की दिशा में बढ़ता हुआ कदम है। आज से पांच दिन पहले ही दिव्यांग-जनों के सशक्तीकरण के विकास में संलग्न सर्वश्रेष्ठ संगठन का राष्ट्रीय पुरस्कार उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी को दिया गया। यह उपलब्धि एक संवेदनशील समाज का परिचय देती है। इस संवेदनशीलता को सभी देशवासी और अधिक व्यापकता तथा दृढ़ता प्रदान करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि सभी देशवासी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। ज्ञात-अज्ञात स्वाधीनता सेनानियों का स्मरण करना हम सभी का कर्तव्य है। बागेश्वर में जन्मीं बिशनी देवी शाह ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान अल्मोड़ा नगर-पालिका-भवन पर तिरंगा लहराया और गिरफ्तार की गईं। वे साधारण परिवार की अल्प-शिक्षित महिला थीं। लेकिन भारत के स्वाधीनता संग्राम को उनके द्वारा दिया गया योगदान असाधारण है। पेशावर कांड के ऐतिहासिक नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की शौर्य-गाथा हमारे स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। इसी तरह श्रीदेव सुमन, केसरी चंद और इन्द्रमणि बडोनी जैसे अनेक स्वाधीनता सेनानियों ने स्वतन्त्रता संग्राम की गौरव गाथाएं लिखी हैं। उत्तराखंड के सपूत गोविंद वल्लभ पंत ने स्वाधीनता संग्राम, संविधान सभा के विचार-विमर्श तथा राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान द्वारा इस क्षेत्र का और भारत का गौरव बढ़ाया है। उत्तराखंड की इन विभूतियों के योगदान से पूरे देश की युवा पीढ़ी को परिचित कराने के प्रयास होने चाहिए।
राष्ट्रपति ने युवा पीढ़ी के संदर्भ में विश्व के सबसे अच्छे बैडमिंटन खिलाड़ियों में अपना स्थान बनाने वाले लक्ष्य सेन का भी उल्लेख किया। आज से कुछ दिनों पहले ही राष्ट्रपति भवन में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि युवा पीढ़ी के उत्साह और योगदान के बल पर वर्ष 2047 में यानि आज़ादी के शताब्दी वर्ष में हमारा देश विश्व-समुदाय में अपनी क्षमता के अनुरूप श्रेष्ठता प्राप्त कर चुका होगा। तब तक उत्तराखंड के सभी निवासियों का जीवन-स्तर भी कहीं अधिक बेहतर हो चुका होगा। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर प्रस्तुत किये सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत के सभी राज्यों की संस्कृति का संरक्षण और विकास किया जाना चाहिए। पहाडों में रहने वाले निवासी अपनी संस्कृति से वन के फूल जैसे आनंदित करते हैं, उन्हें संरक्षित करना आवश्यक है।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) ने राष्ट्रपति का देवभूमि उत्तराखण्ड की जनता की ओर से स्वागत और अभिनंदन करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के उत्तराखण्ड आगमन से यहां का कण-कण स्वयं को ऊर्जावान और गौरवशाली महसूस कर रहा है। राष्ट्रपति पूरे देश की बेटियों, बहनों और माताओं के लिए प्रेरणा का सर्वाेच्च स्रोत हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड की यह भूमि गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम है। यहाँ श्री बद्रीनाथ और श्री केदारनाथ के पावन धाम हैं। गुरु गोबिन्द सिंह की तपस्थली हेमकुंड साहिब और जागेश्वर धाम हैं। दो-दो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा यह प्रदेश देवभूमि है, वीरभूमि है, सैन्य भूमि है। यहाँ अधिकांश परिवारों का कोई न कोई सदस्य सेनाओं में या किसी पैरामिलिट्री फोर्स में शामिल हो कर, देश की रक्षा में लगा हुआ है।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड के निवासियों का जीवन और संस्कृति यहाँ के वातावरण की तरह पवित्र है। हमारे प्रदेश का 70 प्रतिशत से अधिक भाग वन क्षेत्र है। अपने वनों के माध्यम से यह प्रदेश, देश को प्राण-वायु प्रदान करता है। उत्तराखण्ड के पर्यटक स्थल देश-विदेश में विख्यात हैं। उत्तराखण्ड राज्य विकास के कई पैमानों पर आज तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस प्रदेश की सबसे बड़ी ताकत यहाँ की महिलाए हैं। वर्षों-वर्षों से उत्तराखण्ड की महिलाओं ने न सिर्फ यहाँ के समाज को रास्ता दिखाया है बल्कि देश के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत किया है। चिपको आंदोलन की गौरा देवी ने पूरे विश्व को पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाया है। महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएँ न सिर्फ उत्तराखण्ड के ग्रामीण उत्पादों को आगे ला रही हैं बल्कि अपनी आर्थिक समृद्धि की कहानी भी स्वयं लिख रही हैं। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री जी ने अपने बद्रीनाथ भ्रमण के दौरान यहाँ की महिलाओं द्वारा निर्मित उत्पादों की प्रशंसा की थी।
राज्यपाल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखण्ड ने चहुँमुखी विकास की यात्रा तय की है। कभी पहाड़ में रेल का सपना देखा जाता था आज ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन पर तेजी से काम चल रहा है। चारधाम सड़क योजना ने पहाड़ों में सड़क नेटवर्क को मजबूत किया है। अब उड़ान योजना के अन्तर्गत पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जैसे सीमांत जनपद हवाई कनेक्टिविटी से जुड़ रहे हैं। अच्छी कनेक्टिविटी उत्तराखण्ड को पर्यटन और बिजनेस इन्वेस्टमेंट के लिए भी अच्छा डेस्टीनेशन बनाती है। यहाँ आर्गेनिक खेती, जड़ी-बूटी, योग-आयुर्वेद को बढ़ावा देकर इन्हें रोजगार के साधनों से जोड़ा जा रहा है। उत्तराखण्ड कई दशकों से अपनी स्कूली शिक्षा के लिए जाना जाता रहा है लेकिन अब हम इसे उच्च शिक्षा के लिए भी एक आदर्श राज्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का देवभूमि आगमन पर स्वागत और अभिनंदन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक सैनिक परिवार में जन्मे बेटे के घर तीनों सेनाओं की प्रमुख, देश की राष्ट्रपति महोदया कभी आएंगी, ऐसा मैंने कभी सोचा भी नहीं था भले ही यह मेरा सरकारी आवास हो, परंतु आपका यहां स्वयं आना मेरे और उत्तराखंड के सवा करोड़ नागरिकों के लिए गर्व की बात है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में उत्तराखंड आने पर उन्होंने अनुरोध किया था कि राष्ट्रपति बनने के पश्चात आप पुनः देवभूमि अवश्य पधारें। यह अनुरोध स्वीकार करने के लिये उन्होंने राष्ट्रपति का धन्यवाद किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति का अत्यंत कठिन जीवन संघर्ष, अदम्य साहस और प्रेरणास्पद राजनीतिक यात्रा प्रत्येक भारतीय को प्रेरित करती है। उनकी जीवन यात्रा हम सबके लिए इसलिए भी प्रेरणादायी है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में आई समस्त कठिनाइयों को ही अपनी शक्ति बनाकर जीवन सफर में विजय प्राप्त की। वे भारतवर्ष के समस्त नागरिकों विशेष रूप से गरीबों, शोषितों और वंचितों के लिए आशा की किरण हैं। हर संकट का सामना आपने पूरी दृढ़ता से किया। राष्ट्रपति जी सच्चे अर्थों में महिला सशक्तिकरण का जीता जागता प्रतीक हैं। अपने जीवन में सदा ‘कर्म प्रधान विश्व करी राखा‘ के सिद्धांत को सर्वाेपरि माना और विकट परिस्थितियों में भी अपने विनम्रतापूर्ण आचरण को बनाए रखा।
राष्ट्रपति सदैव ’’सादा जीवन-उच्च विचार’’ के मूल मंत्र पर चलती रहीं और यही कारण है कि आज जन-जन के भीतर यही भाव है कि उनके बीच से निकली एक आम महिला देश कि प्रथम नागरिक है। अपने हर दायित्व को आपने पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाया। सदैव समाज कल्याण को वरीयता दी और समाज में पिछड़ों व वंचितों के सशक्तिकरण पर बल दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे लिए प्रेरणा का विषय है कि जीवन में इतने महत्वपूर्ण दायित्वों पर रहने के बावजूद, आज भी राष्ट्रपति साधारण जीवन ही व्यतीत करती हैं। आपके मार्गदर्शन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशन में हमारा राष्ट्र पुनः विश्व गुरु बनने की अपनी यात्रा में इसी प्रकार गतिमान रहेगा और अपने गंतव्य तक शीघ्र पहुंच सकेंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज राष्ट्रपति द्वारा जो लगभग 2002 करोड़ रुपयों की योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण हो रहा है, वो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम राष्ट्रपति के मार्गदर्शन व प्रधानमंत्री के निर्देशन में निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। देश के प्रथम नागरिक के रूप में राष्ट्रपति भारत ही नहीं वरन समस्त विश्व के लिए ’’सशक्त स्त्री-नव दृष्टि’’ विचार का प्रत्यक्ष उदाहरण बनेंगी।