ग्रीन बोनस सहित राज्यों की मांगों से वित्त मंत्री को कराया अवगत

उत्तराखंड ने केंद्र सरकार से राज्य को ग्रीन बोनस के साथ ही विशेष पैकेज देने का अनुरोध किया है। जल विद्युत परियोजनाओं, सड़क और औद्योगिक विकास के लिए हजारों करोड़ों के प्रस्तावों को जल्द स्वीकृति देने की मांग की गई है। कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने सोमवार को केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कई मुद्दों पर बात की। इस दौरान उन्होंने राज्य के लिए ग्रीन बोनस के साथ ही विशेष पैकेज का अनुरोध किया।
सुबोध उनियाल ने कहा कि नीति आयोग की एसडीजी 2020 रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड की रैंक बेहतर होकर अब तीसरी हो गयी है। 2019 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य दसवें स्थान पर था। नीति आयोग की रिपोर्ट इण्डिया इनोवेशन इण्डेक्स-2020 के अनुसार दस पर्वतीय राज्यों में उत्तराखण्ड दूसरे स्थान पर है। ऐसे में राज्य की आर्थिक और विकास जरूरतों को देखते हुए केंद्र सरकार को ग्रीन बोनस के साथ ही विशेष पैकेज देना चाहिए।

रोप-वे परियोजनाओं के लिए 6349 करोड़ मांगे
सुबोध उनियाल ने कहा कि राज्य को रोप वे परियोजनाओं के विकास के लिए 6349 करोड़ उपलब्ध कराए जाएं। इसके साथ ही उन्होंने राज्य में कृषि विकास के लिए 1034 करोड़, औद्यानिकी विकास के लिए 2000 करोड़ देने का भी अनुरोध किया। उन्होंने उत्तरकाशी, चमोली एवं पिथौरागढ़ के सीमान्त क्षेत्रों में आवासीय या गैर आवासीय विद्यालय खोलने का भी अनुरोध किया।

जल विद्युत परियोजनाओं के लिए मांगे 2000 करोड़
उनियाल ने कहा कि राज्य में जल विद्युत उत्पादन की अपार सम्भावनाएं हैं। पर्यावरणीय कारणों के कारणों से गंगा एवं उसकी सहायक नदियों में वर्ष 2013 से 4084 मेगावाट पर कार्य स्थगित है। उन्होंने कहा कि इसके बदले राज्य को कुल 2000 करोड़ या चार सालों तक प्रति वर्ष पांच सौ करोड़ रुपये का भुगतान वीजीएफ के रूप में करने का अनुरोध किया। उन्होंने लखवाड़ बहुउद्देशीय परियोजना पर जल्द काम शुरू करने का भी अनुरोध किया।

टिहरी लेक सिटी के लिए मांगे 1000 करोड़
कैबिनेट मंत्री ने इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री से कहा कि राज्य सरकार टिहरी को लेक सिटी के रूप में विकसित करना चाहती है। इसके लिए 1000 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया है। केंद्र इसके तहत धनराशि उपलब्ध कराए। उन्होंने ऋषिकेश को आइकोनिक पर्यटन स्थल बनाने के लिए 500 करोड़, ऋषिकेश इण्टरनेशनल कन्वेंशन सेण्टर के लिए 592 करोड़ देने का अनुरोध किया।

सड़कों के लिए हर साल मिले 500 करोड़
उनियाल ने रोड कनेक्टिवीटी के लिए राज्य को अतिरिक्त धन दिए जाने की पैरवी की। उन्होंने कहा कि केंद्र से मिल रही राशि से क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत नहीं हो पा रही है। अत आपदा से क्षतिग्रस्त सड़कों के निर्माण के लिए 500 करोड़ प्रतिवर्ष की धनराशि का प्रावधान किया जाए। इसके साथ ही ट्रैफिक दबाव को देखते हुए सड़कों के निर्माण के लिए अधिक बजट दिया जाए।

हरिद्वार के 32 स्कूलों के अवस्थापना सुविधाओं एवं रुपांतरण के लिए हुए एमओयू हस्ताक्षरित

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने जनपद हरिद्वार में राजकीय विद्यालय अंगीकरण कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्य शिक्षा अधिकारी हरिद्वार डॉ. आनन्द भारद्वाज एवं रिलेक्सो फाउण्डेशन के गंभीर अग्रवाल के मध्य जनपद हरिद्वार के 32 स्कूलों के अवस्थापना सुविधाओं एवं रुपांतरण के लिए एमओयू हस्ताक्षरित किया गया।

सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढ़ांचे और शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य से जनपद हरिद्वार में कॉर्पोरेट सेक्टर गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से राजकीय विद्यालय अंगीकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। नीति आयोग द्वारा हरिद्वार जनपद को आकांक्षी जिला घोषित किया गया है। प्रमुख संकेतकों द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जिला प्रशासन हरिद्वार द्वारा स्कूलों में शिक्षा और बुनियादी ढ़ाचे की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नई पहल शुरू की गई है। इस पहल से शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में केपीआई में लक्ष्यों को प्राप्त करने एवं इसके लिए उठाये जा रहे कदमों पर ध्यान दिया जायेगा।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि सरकारी स्कूलों के अंगीकरण कार्यक्रम से स्कूलों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि हरिद्वार से प्रारम्भ हो रहा यह अभियान सबको गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने में निश्चित रूप से मददगार होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा की बेहतरी के लिये कार्ययोजना बनायी गयी है। प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने के लिये राज्य के प्रत्येक ब्लाक में 2-2 अटल आदर्श विद्यालय स्थापित किये जाने की योजना है।

जिलाधिकारी हरिद्वार सी. रविशंकर ने कहा कि इस कार्यक्रम में प्रथम चरण में जनपद के 939 सरकारी स्कूलों को विभिन्न कॉर्पोरेट समूहों द्वारा अपनाया जाना है। जिसमें जिसमें 666 प्राथमिक, 170 उच्च प्राथमिक विद्यालय, 68 माध्यमिक और 35 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय शामिल हैं। सरकारी स्कूलों को मॉडल स्कूलों के रूप में बदलने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा सीएसआर के तहत कॉरपोरेट समूहों को शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

इस अवसर पर अपर सचिव नीरज खेरवाल, मुख्य शिक्षा अधिकारी हरिद्वार डॉ. आनन्द भारद्वाज, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक एच.पी. विश्वकर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक वी.एस. चतुर्वेदी आदि उपस्थित थे।

निर्धारित दर से ज्यादा वसूला तो कोविड-19 एक्ट के तहत होगी कार्रवाई 

राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों को कोरोना मरीजों के उपचार की अनुमति देने के बाद इलाज की दरें तय कर दी हैं। कोरोना की गंभीर स्थिति और सुविधा के अनुसार निजी अस्पताल इलाज का खर्च मरीजों से वसूल सकेंगे। एनएबीएच से मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता वाले निजी अस्पतालों में आठ हजार से 18 हजार रुपये तक दरें तय की गई है। 
सचिव स्वास्थ्य अमित सिंह नेगी ने बुधवार को इलाज के लिए तय दरों के आदेश जारी किए हैं। सरकार की ओर निर्धारित दरों से ज्यादा इलाज का खर्च वसूलने वाले निजी अस्पतालों के खिलाफ कोविड-19 एक्ट के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी।
प्रदेश सरकार ने केंद्र की ओर से नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद पाल की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इलाज की दरों को लागू किया है। नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हास्पिटल(एनएबीएच) से मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों में आईसोलेशन बेड का प्रतिदिन 10 हजार रुपये(1200 रुपये पीपीई किट खर्च समेत), बिना वेटीलेंटर के आईसीयू बेड का 15 हजार (दो हजार रुपये पीपीई किट समेत), आईसीयू वेटीलेंटर का 18 हजार रुपये तय किया है।
जिसमें दो हजार रुपये पीपीई किट का खर्च भी शामिल है। इसी तरह एनएबीएच से गैर मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों में आईसोलेशन बेड का आठ, हजार, आईसीयू का 13000, आईसीयू वेटीलेंटर का 15000 रुपये तय किया है। इसमें पीपीई किट का खर्च भी शामिल होगा। 
कोविड इलाज के लिए तय दरों में बेड, भोजन, निगरानी, नर्सिंग देखभाल, डॉक्टरों का परामर्श शुल्क, सैंपल जांच भी शामिल है। इसके लिए निजी अस्पताल मरीज से अलग से शुल्क नहीं लेंगे। इलाज में अस्पतालों को केंद्र और राज्य सरकार की गाइडलाइन का पूरा पालन करना होगा।

सीमांत राज्यों में पलायन बड़ी चिंताः नीति आयोग

सचिवालय स्थित वीर चंद सिंह गढ़वाली सभागार में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की उपस्थिति में प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन की समस्या पर चिन्तन विषयक बैठक सम्पन्न हुई।
सदस्य नीति आयोग रमेश चंद द्वारा उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से पलायन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए विशेषकर अभाव के कारण हो रहे पलायन को रोकने के लिए कारगर रणनीति बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि सीमान्त क्षेत्र में जनसंख्या निर्वात नहीं होना चाहिये क्योंकि ये आबाद गांव सच्चे ‘‘सीमा प्रहरी’’ का कार्य करते हैं। राज्य में कृषि के प्रति घटते रूझान पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उन्होंने सुझाव दिया गया कि ‘‘लैण्ड लीजिंग’’ कानून में परिवर्तन करके कान्ट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाना होगा ताकि परती जमीन का उपयोग हो सके। पर्वतीय क्षेत्रों में सेटेलाइट सिटीज को विकसित करने का सुझाव भी दिया गया। उन्होंने समान परिस्थिति के पड़ोसी हिमाचल राज्य की रणनीति का भी अनुभव शामिल करने का अधिकारियों को सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के सीमान्त क्षेत्रों से पलायन होना चिन्ता का विषय है। पलायन से गांव में रह रहे अन्य लोगों में भी असुरक्षा का वातावरण होता है जिससे गांव के अस्तित्व को भी खतरा हो जाता है।
कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि विकास के साथ-साथ पलायन सभी राज्यों में हुआ है, परन्तु उत्तराखण्ड सीमान्त क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण यहां गांव खाली होना चिन्ता की बात है। कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड की 90 प्रतिशत कृषि वर्षा पर निर्भर है तथा भौगोलिक परिस्थिति के कारण यहां विभिन्न योजनाओं में संचालित अवस्थापना निर्माण कार्यों में लागत अधिक आती है। उन्होंने कहा कि पलायन यहां की गंभीर समस्या है, इसीलिए भारत सरकार से हिमालयी राज्यों हेतु पृथक नीति बनाने का आग्रह किया गया तथा आपदा के मानकों को भौगोलिक स्थिति के अनुरूप सुसंगत करने का अनुरोध किया गया।
बैठक के प्रारम्भ में प्रभारी मुख्य सचिव/अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने कहा कि राज्य का लगभग 70 प्रतिशत भूभाग वन क्षेत्र है तथा कृषि जोत छोटी एवं वर्षा पर आधारित है। मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा कृषि भूमि की उत्पादकता कम है। उन्होंने सदस्य नीति आयोग का ध्यान आकृष्ट करते हुए गांव के आस-पास छोटे कस्बों को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं में मिलने वाली धनराशि यहां के भौगोलिक परिस्थिति के अनुरूप कम है। उन्होंने गांववासी के कस्बों की ओर रूझान देखते हुए वहां पर्यटन, लघु उद्योगों तथा स्थानीय उत्पादों के व्यवसाय को प्रोत्साहित करने हेतु अधिक से अधिक सहायता की अपेक्षा की, तथा स्थानीय उत्पादों को मूल्यवर्धित रूप देने हेतु तकनीकि एवं ब्रांडिंग के सहयोग हेतु केन्द्रीय सहायता बढ़ाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न स्थानों में वैलनेस सेन्टर स्थापना की भी योजना है। उन्होंने वन औषधि पौध विकास एवं वैलनेस सेन्टर स्थापना गतिविधियों को प्रोत्साहन देने हेतु केन्द्र से सहयोग का अनुरोध किया। अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने राज्य की स्थिति का चित्रण करते हुए अवगत कराया कि सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के समेकन से ही पलायन की समस्या का निराकरण किया जा सकता है।
बैठक में पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एस.एस.नेगी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन की प्रकृति, परिमाण तथा अन्य पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये। सचिव, नियोजन अमित नेगी द्वारा सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए राज्य के महत्वपूर्ण आकड़े प्रस्तुत किये गये। अपर मुख्य सचिव द्वारा संक्षेप में राज्य की स्थिति का चित्रण करते हुए अवगत कराया कि सभी कार्यक्रमोंध्क्रियाकलापों के समेकन से ही पलायन की समस्या का सम्यक् निराकरण हो सकेगा।
बैठक में नीति आयोग के सलाहकार जितेन्द्र कुमार और संयुक्त सलाहकार मानस चैधरी ने भी प्रतिभाग किया। बैठक का संचालन अपर सचिव ग्राम्य विकास योगेन्द्र यादव द्वारा किया गया।

कई कंपनियों का निजीकरण करने की तैयार कर रही सरकार

केंद्र सरकार ने अपनी कई कंपनियों का निजीकरण करने की पूरी तैयारी कर ली है। दिपावली से पहले इसका खाका तैयार किया जा रहा है। वहीं अब नई पॉलिसी के तहत नीति आयोग, विनिवेश और पब्लिक असेट मैनेजमेंट विभाग (दीपम) को नोडल विभाग बना दिया गया है।
पब्लिक असेट मैनेजमेंट विभाग की भूमिका बढ़ने के बाद अब जिन मंत्रालयों के अंदर यह कंपनियां आती हैं, उनकी किसी तरह की कोई भूमिका नहीं रहेगी। दीपम, नीति आयोग के साथ मिलकर के उन कंपनियों को देखेगा, जिनमें सरकार अपनी हिस्सेदारी घटा सकती है। वहीं दीपम विभाग के सचिव विनिवेश के लिए बने अंतर-मंत्रालय समूह के उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। अधिकारियों के मुताबिक, जिन कंपनियों में सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचेगी, उनकी दो चरणों में बोली लगेगी। पहले चरण में एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) मंगाया जाएगा और दूसरे चरण में वित्तीय बोलियां मांगी जाएंगी। पहले चरण के लिए सरकार इच्छुक कंपनियों के साथ बैठक और रोड शो भी करेगी। विनिवेश का पूरा चरण चार से पांच माह में पूरा हो जाएगा।
जिन कंपनियों में सरकार अपनी हिस्सेदारी को बेचने जा रही है, उनमें प्रमुख तेल मार्केटिंग कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) भी शामिल है। इसके अलावा भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया शामिल हैं। कंटेनर कॉरपोरेशन में 30 फीसदी हिस्सा बेचने को मंजूरी दी गई है।
केंद्र सरकार इसके अलावा टीएचडीसी और नीपको में अपनी हिस्सेदारी को एनटीपीसी को बेचने जा रही है। विनिवेश पर हुई सचिवों की बैठक में कुल आठ सचिव शामिल थे. इनमें दीपम, कानून सचिव, रेवेन्यू सेक्रेटरी, एक्सपेंडिचर सेक्रेटरी, कॉरपोरेट अफेयर सेक्रेटरी भी शामिल रहे।
इस विनिवेश को करने के बाद सरकार एयर इंडिया के विनिवेश के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) का प्रारुप तैयार करेगी। इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में बने मंत्रियों का समूह एक पखवाड़े में फैसला लेगा। सरकार एयर इंडिया की 30 हजार करोड़ रुपये की उधारी को अपने ऊपर लेगी। ईओआई से निवेशकों को पूरी तरह से पारदर्शिता मिलेगी।
बीपीसीएल की नेटवर्थ फिलहाल 55 हजार करोड़ रुपये है। अपनी पूरी 53.3 फीसदी बेचकर के सरकार का लक्ष्य 65 हजार करोड़ रुपये की उगाही करने का है। इसके लिए ससंद से भी मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी। पिछले साल सरकार ने ओएनजीसी पर एचपीसीएल के अधिग्रहण के लिए दबाव डाला था। इसके बाद संकट में फंसे आईडीबीआई बैंक के लिए निवेशक नहीं मिलने पर सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में एलआईसी को बैंक का अधिग्रहण करने को कहा था। सरकार विनिवेश प्रक्रिया के तहत संसाधन जुटाने के लिये एक्सचेंज ट्रेडिड फंड (ईटीएफ) का भी सहारा लेती आई है।