नई गाइडलाइन के अनुसार, धार्मिक आयोजन में मूर्ति को छूना प्रतिबंधित

कंटेनमेंट जोन में किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन नहीं होंगे, जबकि अन्य स्थानों में धार्मिक आयोजन पर मूर्तियों को छूने पर प्रतिबंध रहेगा। यह बात स्वास्थ्य विभाग उत्तराखंड ने नई गाइड लाइन जारी कर कही।

सचिव स्वास्थ्य डा. पंकज कुमार पांडे ने कहा कि कंटेनमेंट जोन में किसी भी तरह के धार्मिक पूजा-पाठ, कार्यक्रम, मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जुलूस के साथ भीड़ जुटने वाले कार्यक्रमों की अनुमति नहीं होगी।

धार्मिक स्थानों और नवरात्रि के पंडालों में मूर्तियों को छूना प्रतिबंधित होगा। प्रशासन को नियमित सफाई, थर्मल स्क्रीनिंग और सेनेटाइजेशन के पुख्ता इंतजाम कराने होंगे।

स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन में इस पर जोर दिया गया है कि लोग घरों में रहकर ही त्योहार मनाएं। 65 साल से अधिक के बुजुर्ग, दस साल से छोटे बच्चे एवं गर्भवती महिलाओं को घर पर रहने की सलाह दी गई है।

नवरात्रि में मूर्ति विसर्जन के स्थान तय करने होंगे। विसर्जन के दौरान बेहद कम लोगों को मंजूरी दी जाएगी। पंडालों में रिकॉर्ड गीत बजाने की मंजूरी होगी। मगर गायन समूहों को मंजूरी नहीं मिलेगी।

इसके अलावा कार्यक्रम स्थल की पहचान कर कार्य योजना तैयार करनी होगी। मूर्ति विसर्जन, रैली में निर्धारित संख्या से अधिक लोगों को मंजूरी नहीं, लंबी दूरी की रैली और जुलूस में एंबुलेंस सेवा जरूरी, थियेटर और सिनेमा कलाकारों के लिए जारी गाइड लाइन स्टेज कलाकारों पर भी लागू रहेगी। थर्मल स्क्रीनिंग, सामाजिक दूरी का कराना होगा पालन, सेनेटाइजेशन का पुख्ता इंतजाम करना होगा।

जीएसटी काउंसिल ने मामना राज्यों को भारी राजस्व का नुकसान

जीएसटी काउंसिल की करीब 5 घंटों तक चली विशेष बैठक में राज्यों के राजस्व की भरपाई के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की गई। काउंलिस की बैठक में इस एक खास मुद्दे पर कई विकल्पों को ध्यान में रखकर चर्चा हुई। सभी राज्यों के वित्त मंत्री इस बात पर सहमत थे कि साल 2020-21 कोविड की वजह से काफी मुश्किल भरा रहा है और इस वजह से जीएसटी राजस्व में और ज्यादा गिरावट देखी गई। काउंसिल का आकलन है कि इस साल के लिए राज्यों को राजस्व का कुल घाटा 2 लाख 35 हजार करोड़ का हो सकता है।
काउंसिल में इस मुद्दे पर साफ चर्चा हुई कि ये घाटा केवल जीएसटी की वजह से नहीं हुआ है बल्कि कोविड की वजह से भी राज्यों को काफी नुकसान हुआ है। जीएएसटी का असर समझें तो इस साल के लिए ये घाटा 97,000 करोड़ रूपए का हो सकता है। चर्चा के बाद राज्यों के सामने दो विकल्प दिए गए हैं। वे चाहें तो जीएसटी राजस्व घाटे के 97000 करोड़ के लिए आरबीआई से कम ब्याज दर पर कर्ज ले सकते हैं। इस विकल्प में उन्हें कम उधार लेना पड़ेगा और साल 2022 के बाद कंपन्सेशन सेस के जरिए जो संग्रह किया जाएगा उससे घाटे की भरपाई की जाएगी।
दूसरे विकल्प में राज्य कुल 2,35,000 करोड़ की राशि के घाटे की भरपाई के लिए आरबीआई से उधार ले सकते हैं जिसमें कोविड की वजह से नुकसान भी शामिल है। चर्चा के बाद एक बात साफ हो गई कि जीएसटी के नुकसान के लिए उधार केन्द्र सरकार को नहीं लेना होगा। अब ये विकल्प राज्यों के ऊपर छोड़ दिया गया है। दोनों विकल्पों पर चर्चा के लिए राज्यों को 7 दिनों का वक्त दिया गया है और परिषद सात दिनों के बाद फिर से इन विकल्पों पर अंतिम फैसला लेगी।

सस्ती दरों को मिलेंगी कर्मचारियों को मिलेंगी रोजमर्रा की वस्तुएं

उत्तराखंड सरकार का सहकारिता विभाग राज्य के पांच लाख से अधिक कर्मचारियों को सीधा लाभ पहुंचाने जा रहा है। उत्तराखंड राज्य कर्मचारी कल्याण निगम को विभाग पुनर्जीवित करने जा रहा है। इसमें कर्मचारियों को रोजमर्रा में प्रयोग होने वाली वस्तुएं सस्ती दरों पर मिल सकेंगी। इस योजना का शुभारंभ जुुलाई माह में होगा। 

योजना के तहत उत्तराखंड राज्य कर्मचारी कल्याण निगम ने सृष्टि डिपार्टमेंटल स्टोर से एमओयू कर लिया है। अनुबंध की शर्तों के तहत राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों, निकायों के कर्मचारियों को स्टोर में उपलब्ध छूट के अतिरिक्त न्यूनतम ढाई प्रतिशत से लेकर पांच प्रतिशत तक की छूट मिलेगी। इसके लिए कर्मचारियों को एक कार्ड जारी किया जाएगा। अभी यह फायदा कर्मचारियों को देहरादून में सृष्टि के डिपार्टमेंटल स्टोर से मिलेगी। अगस्त तक इस योजना को प्रदेश के अन्य जिलों में भी ले जाने की योजना है। श्रीनगर और हरिद्वार से बोर्ड ऑफ गर्वनर को भी प्रस्ताव मिल गए हैं। 
2400 से अधिक प्रोडेक्ट की रेंज सृष्टि डिपार्टमेंटल स्टोर के पास उपलब्ध है। इसमें ग्रोसरी से लेकर फैशन, किचन सहित अन्य सामान उपलब्ध हैं। अधिकारियों के मुताबिक सृष्टि का सेल आउटपुट करीब ढाई करोड़ रुपये प्रति माह है। 

17 प्रतिशत अधिकतम छूट सामान के खरीदने पर कर्मचारियों को मिलेगी। स्टोर को कहा गया है कि वह ढाई से पांच प्रतिशत तक की अतिरिक्त छूट उपलब्ध कराए। मतलब ये कि स्टोर अगर दस प्रतिशत की छूूट अपने ग्राहकों को दे रहा है तो वह कर्मचारियों को न्यूनतम 12.5 प्रतिशत की छूट देगा जो अधिकतम 17 प्रतिशत तक हो सकती है। 2015 में इस निगम का गठन किया गया था। उस समय अपर मुख्य सचिव इसके अध्यक्ष थे। तक से यह निगम बंद था। अब सहकारिता सचिव को इस निगम का अध्यक्ष और अन्य विभागों के सचिवों को सदस्य बनाया गया है। 

10 हजार दुधारू पशु उपलब्ध कराने के साथ 500 आंचल मिल्क बूथ स्थापित करेगी सरकार

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत तीन हजार दुग्ध उत्पादकों को कुल 10 हजार दुधारू पशु उपलब्ध कराए जाएंगे और 500 आंचल मिल्क बूथ स्थापित किए जाएंगे। इसके तहत राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना और गंगा गाय महिला डेरी योजना में दुधारू पशुओं को खरीदने पर 25 प्रतिशत अनुदान और शहरी क्षेत्रों में आंचल मिल्क बूथ स्थापित करने के लिए 20 प्रतिशत अनुदान पर ऋण उपलब्ध करवाया जा रहा है।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए ग्राम स्तर पर रोजगार के साधन उपलब्ध कराना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। पशुपालन से ग्रामीणों की आजीविका में सुधार लाया जा सकता है। उक्त योजना का लाभ दुग्ध सहकारी समिति के सदस्यों को दिया जाएगा। जो व्यक्ति वर्तमान में दुग्ध सहकारी समिति का सदस्य न हो परंतु सदस्य बनने का इच्छुक हो, उन्हें भी योजनान्तर्गत लाभान्वित किया जाएगा। योजना के तहत क्रय किए जाने वाले दुधारू पशु राज्य के बाहर से क्रय किए जाएंगे, ताकि प्रदेश में पशुधन की वृद्धि हो। योजना में तीन हजार दुग्ध उत्पादकों को कुल 10 हजार दुधारू पशु उपलब्ध कराए जाएंगे और 500 आंचल मिल्क बूथ स्थापित किए जाएंगे। योजना का लाभ लेने के लिए 01 जून से 15 जुलाई 2020 तक प्रबंधकध्प्रधान प्रबंधक दुग्ध संघ कार्यालय में आवेदन किया जा सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सिर से चारे का बोझा हटाने तथा वर्षपर्यंत पोष्टिक व हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा साइलेज एवं पशु पोषण योजना प्रारंभ की गयी है जिसके अंतर्गत प्रदेश में गठित दुग्ध सहकारी समिति के सदस्यों को 50 प्रतिशत अनुदान पर साइलेज (मक्के का हरा चारा) उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा साइलेज के ढुलान पर होने वाले व्यय की धनराशि भी अनुदान के रूप में दी जा रही है। इस योजना से प्रदेश के मैदानी तथा सुदूरवर्ती जनपदों में दुग्ध उत्पादकों को एक ही दर अर्थात रू 3.25 प्रति किलोग्राम की दर से उनके द्वार पर ही साइलेज की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा रही है। योजना से दुग्ध सहकारी समिति के लगभग 50 हजार पोरर सदस्यों को लाभान्वित किया जायेगा। योजना के सफलता पूर्वक संचालन से जहाँ एक ओर पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार होगा वहीं दूसरी ओर दूध की गुणवत्ता में भी सुधार होने से दुग्ध उत्पादकों को अधिक मूल्य प्राप्त होगा।

विश्व स्तरीय सुविधाओं के अभाव में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को किया जा रहा नजरअंदाज

अंतरराष्ट्रीय सुविधा न होने के कारण देहरादून के खेल मैदान में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच व आइपीएल के मैचों का आयोजन संभव होता नहीं दिख रहा है। यदि जल्द ही क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड व राज्य सरकार ने इस दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किए तो विश्व पटल पर जिस तेजी से राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम उबरा है, उसकी छवि समय के साथ धूमिल होती जाएगी।

स्टेडियम का निमार्ण पूरा होने के बाद ही अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने स्टेडियम को अपना होम ग्राउंड बना लिया था। इसके बाद राजीव गांधी स्टेडियम में पिछले एक साल में दो देश बांग्लादेश और आयरलैंड के साथ अंतरराष्ट्रीय श्रृंखला खेली जा चुकी है।

इसी क्रम में छह नवंबर से शुरू हो रही अफगानिस्तान और वेस्टइंडीज के बीच अंतरराष्ट्रीय श्रृंखला भी यहां खेले जाने की उम्मीद थी, लेकिन श्रृंखला से पहले अफगानिस्तान अपना होम ग्राउंड बदल लिया है। इसका कारण वह स्टेडियम के नजदीक पांच सितारा होटल न होना बता रहा है।

अफगानिस्तान बोर्ड का कहना है कि उसे स्टेडियम से कोई परेशानी नहीं है, लेकिन बड़ी टीमें पांच सितारा होटल की सुविधाएं मांगती हैं। इसलिए उनको लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी इकाना अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम को अपना होम ग्राउंड बनाना पड़ा। इस संबंध में अफगानिस्तान बोर्ड ने श्रृंखला की जानकारी दे दी है। अफगानिस्तान-वेस्टइंडीज के बीच छह नवंबर से तीन वन-डे, तीन टी-20 व एकमात्र टेस्ट मैच खेला जाना है।

जून 2018 में अफगानिस्तान और बांग्लादेश के बीच होने वाली श्रृंखला से पहले आइसीसी मैच रेफरी जवागल श्रीनाथ ने स्टेडियम का निरीक्षण किया। स्टेडियम की सुविधाओं से वह खुश नजर आए, लेकिन उन्होंने फाइव स्टार होटल न होने की बात कही थी।

इसके बाद रणजी सत्र के दौरान बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना रणजी मैच देखने स्टेडियम पहुंचे थे, वह भी स्टेडियम की सुंदरता के कायल हुए, लेकिन सुझाव स्वरूप उन्होंने पांच सितारा होटल की बात कही थी। इससे पहले आइपीएल फ्रेंचाइजी टीम दिल्ली ने भी स्टेडियम को अपना होम ग्राउंड बनाने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन पांच सितारा होटल नहीं होने से उन्होंने भी हाथ पीछे खींच लिए। इसके बाद भी राज्य सरकार ने दून में फाइव स्टार होटल बनाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया।

जबकि, पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2009 से आइपीएल व 2012 से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के आयोजन हो रहें हैं। यहां स्टेडियम के पास ही फाइव स्टार होटल व तमाम अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं है।

25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशी भी लड़ पाएंगे पंचायत चुनाव

देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को बड़ा झटका देते हुए ग्राम पंचायत चुनाव में तीन बच्चों वाले मामले में प्रत्याशियों के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह का समय जवाब देने का दिया है। कोर्ट के आदेश के बाद ग्राम प्रधान, उप प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पद पर 25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशियों का चुनाव लडने का रास्ता साफ हो गया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में 25 जुलाई 2019 को कट ऑफ डेट माना था। इस तिथि के बाद दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशी अयोग्य माने जाएंगे।

पंचायत जनाधिकार मंच के प्रदेश संयोजक व पूर्व ब्लॉक प्रमुख जोत सिंह बिष्टड्ढ, कोटाबाग के मनोहर लाल, पिंकी देवी समेत 21 लोगों ने हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर कर सरकार के पंचायत राज एक्ट में किए संशोधन को चुनौती दी थी। जिसमें दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशियों को पंचायत चुनाव लडने के लिए अयोग्य करार दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस संशोधित एक्ट को लागू करने के लिए ग्रेस पीरियड नहीं दिया गया। संशोधन को बैक डेट से लागू करना विधि सम्मत नहीं है। पिछले दिनों मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए इस संशोधन को लागू करने की कट ऑफ डेट 25 जुलाई 2019 नियत कर दी। इस आदेश के बाद कट ऑफ डेट के पहले दो से अधिक बच्चों वाले ग्राम पंचायत प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर के प्रत्याशी चुनाव लडने के योग्य हो गए। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। सोमवार को जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली संयुक्त पीठ ने राज्य सरकार के हाई कोर्ट के आदेश में स्थगनादेश की अपील को नहीं माना। साथ ही याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार के एसएलपी दाखिल करने की भनक लगने के बाद पंचायत जनाधिकार मंच द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की गई थी।

पंचायत प्रतिनिधि कह रहे बहुत नाइंसाफी हुई, आखिर जानिए कैसे?

पंचायत राज संशोधन अधिनियम को लेकर हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की है जिस पर सोमवार को सुनवाई होनी है। गौरतलब है कि गुरुवार को हाई कोर्ट ने 25 जुलाई 2019 से पहले दो बच्चों से अधिक वाले ग्राम पंचायत प्रत्याशियों को चुनाव लडने के योग्य करार दिया था। इस फैसले को सरकार असहज होना पड़ा और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने का निर्णय किया।
हाई कोर्ट ने दो से अधिक बच्चों वाले प्रत्याशियों के मामले में पारित आदेश पर साफ किया है कि कोर्ट के समक्ष जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायत का मामला आया ही नहीं। सिर्फ ग्राम पंचायतों का ही मामला आया। अदालत ने 25 जुलाई 2019 के बाद वाले तीन बच्चों वाले प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित किया है जबकि इस तिथि से पहले वालों को योग्य। पंचायती राज संशोधित नियमावली के नियम-8-1(आर) में ग्राम प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर से संबंधित, नियम-53-1(आर) में जिला पंचायत तथा नियम 91-1 में क्षेत्र पंचायत सदस्यों के चुनाव लडने से संबंधित प्रावधान है। कोर्ट ने ग्राम पंचायत से संबंधित संशोधित प्रावधान पर रोक लगाई है, अन्य में हस्तक्षेप नहीं किया है। उधर पूर्व ब्लॉक प्रमुख व कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट की ओर से बीडीसी व जिला पंचायत सदस्य पदों के लिए भी इस आदेश को लागू करने की मांग को लेकर याचिका दायर करने की तैयारी की जा चुकी है।

सतपाल और पांडेय ने क्यों की योगी सरकार की तारीफ, मानेंगे यूपी सरकार का फैसला!

उत्तर प्रदेश में लंबे समय से मंत्रियों का आयकर सरकार ही भर रही थी। इस पर अब योगी सरकार ने रोक लगाई है। उत्तराखंड चूंकि पहले उत्तर प्रदेश का ही अंग था इस कारण अविभाजित उत्तर प्रदेश से चली आ रही व्यवस्था यहां भी बदस्तूर जारी है। यानी मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों का आयकर सरकार ही भर रही है। उत्तराखंड में मंत्रियों को वेतन भत्ते मिलाकर प्रतिमाह 4.40 लाख रुपये दिए जाते हैं। इनमें से 90 हजार रुपये केवल वेतन है। शेष अन्य भत्ते हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के आयकर स्वयं भरने के निर्णय के बाद अब उत्तराखंड में भी इस दिशा में सकारात्मक पहल होती नजर आ रही है। त्रिवेंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और अरविंद पांडेय ने इसकी पैरवी की है।
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि मंत्रियों को सरकारी खजाने से नहीं, बल्कि अपना आयकर स्वयं भरना चाहिए। वह अपना आयकर स्वयं भरते हैं। वह इसका परीक्षण भी करेंगे। वहीं, कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि वह तो विधायक निधि के पक्ष में भी नहीं रहे हैं। इस कारण उनकी भावना को समझा जा सकता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के मंत्रियों को 1.64 लाख रुपये प्रतिमाह वेतन भत्तों के रूप में दिए जाते हैं और उनका मूल वेतन 40 हजार रुपये हैं। इस लिहाज से उत्तराखंड के मंत्रियों का वेतन कहीं अधिक है। इसे देखते हुए प्रदेश में भी मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों द्वारा आयकर भरने की मांग उठने लगी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इसका परीक्षण करने की बात कर चुके हैं। अब दो मंत्रियों ने मंत्रियों के स्वयं आयकर भरने को लेकर उठ रही मांग के समर्थन में कदम आगे बढ़ाए हैं। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि वह अपना टैक्स स्वयं भरते हैं। मंत्रियों को सरकारी खजाने से नहीं बल्कि स्वयं टैक्स भरना चाहिए। बाकि वह मामले का अध्ययन करेंगे।

आखिर 12 लाख परिवारों को जल्द मिलेंगा पानी का कनेक्शन

राज्य सरकार ने आम आदमी को राहते देते हुए फैसला लिया है कि उत्तराखंड में पानी के कनेक्शन से वंचित 12 लाख परिवारों को जल्द ही अपना कनेशक्न मिलेगा। जल जीवन मिशन के तहत इन परिवारों को पानी का कनेक्शन देने की कवायद शुरू कर दी गई है। इस बाबत राज्य जल स्वच्छता मिशन ने राज्य से जिले स्तर तक एक्शन प्लान बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में 12 लाख परिवार ऐसे हैं जो आज भी सार्वजनिक नल, स्टैंड पोस्ट, गूल, नहर, गदेरों से पानी लेकर प्यास बुझा रहे हैं। खासकर पर्वतीय जिलों के दूरस्थ इलाकों में ऐसे परिवारों की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। सूबे में अब तक आई सरकारें इन घरों में पानी का कनेक्शन देने में नाकाम रही हैं। पानी की इसी समस्या को देखते हुए केंद्र सरकार ने हर घर नल योजना शुरू की है। इस योजना में 2024 तक हर घर में शुद्ध पानी पहुंचाने के लिए पानी का कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है।
प्रदेश में भी 12 लाख परिवारों को कनेक्शन देने का लक्ष्य निर्धारित है। इसके लिए सर्वे का कार्य भी शुरू कर दिया गया है। इस बाबत प्राथमिक तौर पर 6,000 करोड़ रुपये का प्रस्ताव बनाया गया है, हालांकि इसमें लागत घटाई बढ़ाई जा सकती है। इस रकम से इंफ्रास्ट्रक्चर (पेयजल लाइन, ओवरहेड टैंक, नलकूप आदि) विकसित किया जाएगा। वहीं पेयजल निगम और जल संस्थान को जिला एक्शन प्लान बनाने के निर्देश दिए हैं। फिर राज्य का एक्शन प्लान तैयार होगा। राज्य जल स्वच्छता मिशन के मुख्य अभियंता योगेंद्र सिंह ने बताया कि हर घर नल योजना को सफल बनाने के लिए जल संस्थान और जल निगम की मदद से एक्शन प्लान तैयार हो रहा है।

एक लाख कर्मचारियों को मिली राहत, नए आदेश जारी

हाल ही में शासन ने सीधी भर्ती और पदोन्नति पाने वाले कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में अंतर को समाप्त करने के संबंध में जो आदेश किया था, उसका लाभ अब प्रदेश के एक लाख कर्मचारियों को मिलने जा रहा है।
दरअसल, छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सीधी भर्ती और पदोन्नति के पदों पर न्यूनतम वेतन निर्धारण में विसंगति पैदा हो गई थी। इसके संबंध में शिक्षा विभाग ने शासन से स्पष्टीकरण मांगा था, जिस पर शासनादेश जारी किया गया। कर्मचारी संगठनों ने जब खोज खबर की तो खुलासा हुआ कि इसका फायदा प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को मिलेगा। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के मुख्य संयोजक ठाकुर प्रहलाद सिंह ने कहा कि इससे कर्मचारियों और शिक्षकों को 1000 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक का वित्तीय लाभ मिलेगा।
प्रदेश में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सीधी भर्ती और पदोन्नत कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन में असमानता की विसंगति पैदा हो गई थी। पदोन्नति के बाद कर्मचारियों को समान पद पर सीधी भर्ती से कम न्यूनतम वेतन निर्धारित हुआ। इसे लेकर पदोन्नति पाने वाले शिक्षक व कर्मचारी सरकार से लगातार विसंगति दूर करने की मांग कर रहे थे।
अब नए शासनादेश से पदोन्नति के बाद कर्मचारी का न्यूनतम वेतन सीधी भर्ती से आए कर्मचारी के बराबर होगा। प्रदेश सरकार के तकरीबन सभी विभागों में इसी तरह की विसंगति है। इनमें प्रमुख विभाग वन, मत्स्य, कृषि, उद्यान, ग्राम्य विकास, गन्ना, आबकारी, परिवहन, सहकारिता, वाणिज्य कर, ग्रामीण अभियंत्रण, राजस्व, खाद्य आपूर्ति, मनोरंजन कर समेत कई अन्य विभागों के कर्मचारी लाभान्वित होंगे।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने आशंका जताई कि विभागों के अध्यक्ष शासनादेश को शिक्षा विभाग तक सीमित करके कर्मचारियों को उनके लाभ से वंचित कर देना चाहते हैं। लेकिन परिषद चुप नहीं बैठेगी। शनिवार को परिषद की बैठक में तय हुआ कि कोई विभागाध्यक्ष शासनादेश को लागू करने में हीलाहवाली करेगा तो परिषद उसका घेराव करेगी। बैठक में प्रदीप कोहली, नंद किशोर त्रिपाठी, शक्ति प्रसाद भट्ट, राकेश प्रसाद ममगाईं, गुड्डी मटूड़ा, विजया जोशी, एनएस कुंद्रा, सुभाष शर्मा समेत कई अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।