उत्तराखंड में सरकारी मेडिकल कालेजों से बांड के तहत एमबीबीएस करने वाले गैरहाजिर डॉक्टरों को स्वास्थ्य विभाग ने ज्वाइनिंग का अंतिम नोटिस जारी कर दिया है। इसके बाद बांड की शर्तों के मुताबिक दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में सेवाएं न देने वाले बांड धारक डॉक्टरों से 18 प्रतिशत ब्याज के साथ फीस की वसूलने की कार्रवाई अमल में लाई जायेगी।
प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने सरकारी मेडिकल कालेजों में बांड योजना शुरू की थी। जिसमें बांड भरकर एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों को फीस में भारी छूट दी गई। लेकिन एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ डॉक्टर ने युवाओं ने दुर्गम क्षेत्रों में सेवाएं देने से इनकार कर दिया। स्वास्थ्य विभाग की ओर से सख्ती करने पर ऑल इंडिया रैकिंग से बांड के तहत एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
जिसमें हाल ही में हाईकोर्ट ने बांड की शर्त के अनुसार ज्वाइनिंग न करने वाले डॉक्टरों से 18 प्रतिशत ब्याज के साथ फीस वसूलने के आदेश दिए। अपर सचिव, स्वास्थ्य विभाग, युगल किशोर पंत ने बताया स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों से गैरहाजिर चल रहे बांड धारक डॉक्टरों का रिकॉर्ड तैयार कर नोटिस जारी किए गये हैं। जिसमें ऑल इंडिया रैकिंग के करीब 22 डॉक्टर हैं। वहीं राज्य कोटे की सीट से बांड भरने वाले डॉक्टरों को नोटिस संबंधित कालेजों को भेजे गए हैं।
वहीं, इस साल से सरकार ने दून और हल्द्वानी मेडिकल कालेज में बांड के माध्यम से एमबीबीएस करने की योजना को समाप्त कर दिया है। अब श्रीनगर मेडिकल कालेज और अगले साल से अल्मोड़ा मेडिकल कालेज में ही बांड भरकर कम फीस पर एमबीबीएस की सुविधा मिलेगी।
बांड से प्रशिक्षित डॉक्टरों से एमबीबीएस की 15, 25, 50 हजार रुपये की फीस ली जाती है। जबकि बिना बांड के फीस चार लाख रुपये सालाना देनी होती है। बांड से एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों को एक साल तक मेडिकल कालेजों में सेवाएं देनी होती हैं। इसके बाद दो साल तक दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों और दो वर्ष तक जिला चिकित्सालयों में सेवाएं देनी अनिवार्य हैं।