एम्स के विशेषज्ञों की राय, लाॅकडाउन में स्वास्थ्य के प्रति नहीं बरतें लापरवाही

यदि आप कई दिनों तक एक ही मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो सावधान हो जाइये। आपकी यह लापरवाही म्यूकर माइकोसिस से ग्रसित होने की वजह बन सकती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश ने इस बाबत सलाह दी है कि कोविड19 से सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सूती कपड़े के मास्क को दोबारा पहनने से पहले दैनिकतौर से अवश्य धो लें, यह बेहद जरूरी है।

जून और जुलाई के महीने वातावरण में आर्द्रता बहुत कम हो जाती है। ऐसे में जब हम नाक से सांस लेते हैं तो उसके आगे मास्क लगे होने से मास्क के अन्दर की ओर नमी बनी रहती है। मास्क को लगातार पहने रहने से इस नमी में कीटाणु पनपने लगते हैं और जिससे फंगस के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हो जाता है। फिर नाक और मुंह से होता हुआ यह फंगस धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंगों को संक्रमित कर देता है।

एम्स निदेशक प्रोफेसर रवि कान्त ने बताया कि सूती मास्क हमेशा धुले हुए और साफ-सुथरे पहनने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कोई जरूरी नहीं है कि जिसे कोविड नहीं हुआ हो उसे म्यूकर माइकोसिस नहीं हो सकता। नाॅन डिस्पोजल मास्क को दैनिकतौर से साफ नहीं करने वाले लोगों को भी इस बीमारी का खतरा हो सकता है। उन्होंने बताया कि कोविड और म्यूकर माइकोसिस दोनों ही बीमारियों से तभी बचाव संभव है, जब कोविड गाइडलाइनों का पूर्ण पालन करने के साथ साथ मास्क का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। खासतौर से जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर है उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतने की नितांत आवश्यकता है।

कोविड के नोडल अधिकारी डाॅ. पीके पण्डा ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण अधिकांश नाॅन कोविड रोगी अपने स्वास्थ्य संबंधी जांचों के प्रति लापरवाह बने हुए हैं। ऐसे में नियमित जांच नहीं कराए जाने से उन्हें अपनी इम्युनिटी और ब्लड में शुगर लेवल की मात्रा का पता नहीं चल पाता। उन्होंने कहा कि म्यूकर माइकोसिस से बचाव के लिए ब्लड में शुगर की मात्रा की रेगुलर जांच कराना जरुरी है। म्यूकर रोगियों के उपचार की सुविधा के बारे में उन्होंने बताया कि ऐसे रोगियों के लिए एम्स में 7 वार्ड बनाए गए हैं। इनमें कुल 185 बेड हैं, जिनमें 65 आईसीयू सुविधा वाले बेड हैं।

म्यूकर माइकोसिस फंगस अक्सर कोविड के लक्षण उभरने के 3 सप्ताह बाद से पनपना शुरू होता है। कमजोर इम्युनिटी और शुगर पेशेंट के लिए यह फंगस सबसे अधिक घातक है। म्यूकर माइकोसिस ट्रीटमेंट टीम के हेड और ईएनटी सर्जन डाॅ. अमित त्यागी का कहना है कि कोविड की दूसरी लहर का पीक टाईम मई का दूसरा सप्ताह था। इस लिहाज से मई अंतिम सप्ताह और जून के पहले सप्ताह तक म्यूकर के मरीजों का ग्राफ तेज गति से बढ़ा था। लेकिन अब इसमें कमी आनी शुरू हो गई है। मई महीने में एम्स में दैनिकतौर पर म्यूकर ग्रसित 7 से 12 पेशेंट आ रहे थे। जबकि अब यह संख्या 4 से 7 प्रतिदिन हो गई है। उन्होंने बताया कि एम्स में अभी तक म्यूकर के कुल 208 पेशेंट आ चुके हैं।

म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) के निदान के लिए एम्स ऋषिकेश की नीतियां


अत्यधिक संक्रामक बीमारी म्यूकोर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) के निदान के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में अलग से एक विशेष वार्ड स्थापित किया गया है। जिसमें ब्लैक फंगस से ग्रसित रोगियों का उपचार विभिन्न विभागों के 15 विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में किया जाएगा।

निदेशक प्रो. रवि कांत ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस एक घातक एंजियोइनवेसिव फंगल संक्रमण है, जो मुख्यरूप से नाक के माध्यम से हमारी श्वास नली में प्रवेश करता है। मगर इससे घबराने की नहीं बल्कि सही समय पर इलाज शुरू कराने की आवश्यकता है। संस्थान के नोडल ऑफिसर कोविड डाॅ. पी.के. पण्डा ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के उपचार के लिए गठित 15 सदस्यीय चिकित्सकीय दल इस बीमारी का इलाज, रोकथाम और आम लोगों को जागरुक करने का कार्य करेगी। टीम के हेड और ईएनटी के विशेषज्ञ सर्जन डा. अमित त्यागी जी ने बताया कि म्यूकोर माइकोसिस के रोगियों के इलाज के लिए अलग से एक म्यूकर वार्ड बनाया गया है। जिसमें सीसीयू बेड, एचडीयू बेड और अन्य आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं।

म्यूकोर के प्रमुख लक्षण-

तेज बुखार, नाक बंद होना, सिर दर्द, आंखों में दर्द, दृष्टि क्षमता क्षीण होना, आंखों के पास लालिमा होना, नाक से खून आना, नाक के भीतर कालापन आना, दांतों का ढीला होना, जबड़े में दिक्कत होना, छाती में दर्द होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। यह बीमारी उन लोगों में ज्यादा देखी जा रही है, जिन्हें डायबिटीज की समस्या है।

उच्च जोखिम के प्रमुख कारण-

1- कोविड-19 का वह मरीज जिसका पिछले 6 सप्ताह से उपचार चल रहा हो।
2- अनियंत्रित मधुमेह मेलिटस, क्रोनिक ग्रेनुलोमेटस रोग, एचआईवी, एड्स या प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी स्टेटस।
3. स्टेरॉयड द्वारा इम्यूनोसप्रेशन का उपयोग (किसी भी खुराक का उपयोग 3 सप्ताह या उच्च खुराक 1 सप्ताह के लिए ), अन्य इम्युनोमोड्यूलेटर या प्रत्यारोपण के साथ इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा।
4. लंबे समय तक न्यूट्रोपेनिया।
5. ट्रॉमा, बर्न, ड्रग एब्यूजर्स।
6. लंबे समय तक आईसीयू में रहना।
7. घातक पोस्ट ट्रांसप्लांट ।
8. वोरिकोनाजोल थैरेपी, डेफेरोक्सामाइन या अन्य आयरन ओवरलोडिंग थैरेपी।
9. दूषित चिपकने वाली धूल, लकड़ी का बुरादा, भवन निर्माण और अस्पताल के लिनेन।
10. कम वजन वाले शिशुओं, बच्चों व वयस्कों में गुर्दे का काम नहीं करना और दस्त तथा कुपोषण।

बचाव एवं सावधानियां-

1- अपने आस-पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए ब्रेड, फलों, सब्जियों, मिट्टी, खाद और मल जैसे सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों से दूर रहना।
2- हायपरग्लेमिया को नियं​त्रित रखना।
3- स्टेरॉयड थैरेपी की आवश्यकता वाले कोविड- 19 रोगियों में ग्लूकोज की निगरानी करना।
4- स्टेरॉयड के उपयोग के लिए सही समय, सही खुराक और सही अवधि का निर्धारण।
5- ऑक्सीजन थैरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए स्वच्छ व शुद्ध जल का उपयोग करें।
6- एंटीबायोटिक्स व एंटीफंगल का प्रयोग केवल तभी करें, जब चिकित्सक द्वारा परामर्श दिया गया हो।
7- बंद नाक वाले सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस के मामलों के रूप में नहीं मानें।
8- म्यूकोर के लक्षण महसूस होने पर मेडिसिन, ईएनटी और नेत्र विशेषज्ञों को दिखाना चाहिए।