अजीत डोभाल देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने रहेंगे। साथ ही भारत सरकार में उनका दर्जा कैबिनेट मंत्री स्तर का होगा। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में उन्हें राज्य मंत्री स्तर का दर्जा प्राप्त था। राष्ट्रीय सुरक्षा में उनके योगदान को देखते हुए डोभाल को फिर से यह जिम्मेदारी दी गई है।
सोमवार को कार्मिक मंत्रालय के एक आदेश में इसकी जानकारी दी गई है। आदेश में कहा गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने डोभाल को इस पद पर दोबारा नियुक्त किये जाने के संबंध में अपनी मंजूरी दे दी है और यह व्यवस्था 31 मई 2019 से प्रभावी होगी। प्रधानमंत्री के कार्यकाल के साथ-साथ उनकी नियुक्ति भी स्वतः समाप्त हो जाएगी ।
आदेश में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर नियुक्ति के दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का रैंक दिया गया है। डोभाल को पहली बार मई 2014 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था और उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था।
एक नजर में डोभाल ….
50 के दशक में मिजो मूल के भारतीय सेना के एक हवलदार लालडेंगा को केंद्र सरकार की नीतियां अपने क्षेत्र के लिए अनुचित लगीं। नतीजतन उसने सेना की नौकरी छोड़ी, बागी होकर मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) बनाया और मिजोरम को भारत से पृथक एक संप्रभु राष्ट्र बनाने के लिए हिंसक आंदोलन छेड़ दिया। मिजो जिला उस समय असम का हिस्सा था। एमएनएफ ने सरकारी कार्यालयों और सुरक्षाबालों पर हमले शुरू कर दिए। इस आंदोलन से सेना तो निपट ही रही थी, केरल काडर के एक युवा आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को पृथकतावादियों से वार्ता में लगाया गया।
डोभाल ने वार्ता के दौरान इस आंदोलन के नेताओं का दृष्टिकोण न केवल भारत के साथ रहने के लिए बदला बल्कि अंततः खुद लालडेंगा ने भी शांति प्रस्ताव को स्वीकार किया। इन वार्ताओं की सफलता ने अजित डोभाल को अपने सेवाकाल के मात्र छठवें वर्ष में पुलिस सेवा मेडल दिलवाया, यह सम्मान पाने वाले वे सबसे युवा पुलिस अधिकारी बने। यह एक घटना इंटेलीजेंस और राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े मामलों में अजित डोवाल की भूमिका को केवल समझाने के लिए काफी है।
डोभाल ने अपने करीब 37 वर्ष के कॅरिअर में सिक्कम के भारत में विलय, आईएसआई समर्थित खालिस्तानी आतंकवाद, रोमानियाई राजदूत लिवियू राडु की पंजाब में अपहरण के बाद रिहाई, स्वर्ण मंदिर को आतंकियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए चले ऑपरेशन ब्लैक थंडर, इस्लामाबाद में सात वर्ष हाईकमीशन में सेवा और 90 के दशक में कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ इख्वान उल मुस्लेमून संगठन स्थापित करने जैसे कारनामे अंजाम दिए। इनके लिए उन्हें विशेष रूप से पहचाना जाता है।