ऋषिकेश।
रविवार को सुबह से लोगों में होली पूजन को लेकर उत्साह देख गया। नगर में सैकड़ों स्थानों पर होलिका दहन की तैयारी की गयी थी। कई मौहल्लें व स्थान तो ऐसे है जहां पीढ़ी दर पीढ़ी होलिका दहन की जाती है। ऐसे ही स्थानों में त्रिवेणीघाट, वह स्थान है जहां स्थानीय लोग बड़ी संख्या में होलिका पूजन के लिए एकत्रित होते है। त्रिवेणीघाट पर होलिका पूजन करने आये श्रद्धालुओं ने गोबर के उपले, कंडी, गुलगुल और मीठे पकवान भी चढ़ाये। उसके बाद होलिका की परिक्रमा कर बुराई पर अच्छाई की जीत और परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद मांगा।
मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को जिंदा जलाने के लिए बुआ होलिका की गोद में बिठाकर चिता तैयार की गई थी। होलिका को आशीर्वाद मिला था कि उसे आग नही जला सकती है। लेकिन बुरा कार्य करने के चलते भगवान ने उसका आशीर्वाद छीन लिया। जिसके फलस्वरूप प्रहलाद तो भगवान की कृपा से बच गया लेकिन बुआ जलकर राख हो गयी। तभी से हिन्दू परंपरा के अनुसार लोग श्रद्धाभाव से होलिका का पूजन कर अपनी बुराईयों का अंत करने और परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद मांगते है।
उत्तराखंड संस्कृत रत्न की उपाधि से विभूषित डॉ. चंडीप्रसाद घिल्डियाल के अनुसार, प्रदोष काल 6.20 से 8.35 तक होलिका दहन का शुभ मुहुर्त रहा। होलिका पूजन कर लोग काम, क्रोध, मोह, मद, लोभ, मदसर जैसी बुराईयों पर विजय प्राप्त करने की मनोकामना करते है। बदलते मौसम व वातावरण में अनेक प्रकार की बुराईयों व बीमारियों का दहन को ही होलिका दहन कहा जाता है। बताया कि होलिका पूजन से लाभ मिलता है। सभी को होलिका पूजन कर अपनी बुराईयों पर विजय प्राप्त करने की ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिये।