लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त जीत के बाद अब हरियाणा और महाराष्ट्र में जनता ने फिर भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर मुहर लगा दी है। गुरुवार को आए विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए अनुमानों से कमतर रहे, लेकिन पार्टी दोनों राज्यों में सरकार बनाने जा रही है। हरियाणा में 90 में से 40 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी भाजपा को छह निर्दलीयों का समर्थन मिला है। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना गठबंधन को 288 में से 161 सीटों पर जीत के साथ स्पष्ट बहुमत मिला है। भाजपा नेतृत्व ने भी दोनों राज्यों में अपने मुख्यमंत्रियों पर भरोसा जताया है। जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस को फिर कमान सौंपने की पुष्टि की है। मनोहर लाल शुक्रवार को राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे।
हरियाणा में नतीजे काफी चैंकाने वाले रहे। यहां सबसे ज्यादा चैंकाया सालभर पहले अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने। सालभर पहले ही पारिवारिक विवाद के बाद इनेलो से अलग होकर दुष्यंत चैटाला ने पार्टी गठित की थी। जजपा ने पहली ही बार में 10 सीटों पर जीत हासिल कर ली। नतीजों के बाद जजपा को किंगमेकर की भूमिका में देखा जा रहा था। हालांकि भाजपा को सात में से छह निर्दलीयों का समर्थन मिलने के बाद जजपा का चमत्कारिक प्रदर्शन भी उसे कुछ खास फायदा दिलाता नहीं दिख रहा है।
हरियाणा के नतीजे कांग्रेस के लिए भी अच्छे रहे। कांग्रेस 15 से 31 सीट पर पहुंच गई। चुनाव के ठीक पहले पार्टी में उभरी कलह और उठापटक के बावजूद ये नतीजे कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने वाले हैं। सीटों के लिहाज से नतीजे भाजपा के लिए थोड़ा निराशाजनक रहे। पिछले साल 47 सीटें जीतने वाली भाजपा 40 सीटों पर आ गई। हरियाणा के नतीजों में भाजपा के लिए सोचने वाली बात यह है कि सात निर्दलीयों में से छह भाजपा से जुड़े रहे हैं। भाजपा के लिए बड़ा झटका यह भी है कि राज्य सरकार में कैबिनेट का हिस्सा रहे आठ मंत्री चुनाव हार गए हैं।
महाराष्ट्र के नतीजे बहुत ज्यादा उलटफेर वाले तो नहीं कहे जा सकते हैं, लेकिन उम्मीदों से दूर जरूर हैं। विश्लेषकों का मानना है कि देश में फैला आर्थिक सुस्ती का साया महाराष्ट्र में भाजपा के नतीजों पर दिखा है। 2014 में अकेले लड़कर 288 में 122 सीटें जीतने वाली भाजपा के खाते में इस बार नतीजों और रुझानों के आधार पर 105 सीटें आती दिख रही हैं। शिवसेना भी 63 से 56 पर आ गई है। सबसे ज्यादा फायदे में शरद पवार की राकांपा रही है। राकांपा का आंकड़ा इस बार 41 से 54 पर पहुंच गया है। सोनिया गांधी के हाथ में दोबारा कमान आने के बाद कांग्रेस भी बढ़त में दिखी। पार्टी को 2014 के 42 के मुकाबले 44 सीट मिली है।
नतीजों से सरकार गठन के गणित पर ज्यादा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। हालांकि उपमुख्यमंत्री शिवसेना को मिलेगा या नहीं, इस मुद्दे पर न तो देवेंद्र फड़नवीस ने मुंह खोला है, न ही उद्धव ठाकरे ने। फिलहाल उद्धव ठाकरे यह कहकर ताना मारने से नहीं चूके कि जिनके नेत्र बंद थे, उन्हें खोलकर जनता ने अंजन लगा दिया है। उम्मीद है कि अब पीछे की गई गलतियां दोहराई नहीं जाएंगी।